अखंड केसरी ब्यूरो:-शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के भीतर हालिया घटनाक्रम ने पार्टी के भीतर गहरे असंतोष को उजागर कर दिया है। पार्टी के नेतृत्व ने जिस प्रकार से आठ वरिष्ठ नेताओं को निलंबित किया है, उससे पार्टी के अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं में चिंता की लहर दौड़ गई है। पार्टी के सरपरस्त सुखदेव सिंह ढींडसा और अन्य प्रमुख नेताओं को निलंबित किए जाने के बाद, पार्टी में आंतरिक मतभेद और गहरा गए हैं। इस कार्रवाई ने एक तरह से पार्टी को दो स्पष्ट धड़ों में विभाजित कर दिया है, जहां एक तरफ पार्टी का मुख्य नेतृत्व है, वहीं दूसरी तरफ बागी नेता अपने समर्थन आधार को एकजुट करने में जुट गए हैं।
कई नेताओं को इस बात का डर सता रहा है कि निलंबित नेता कहीं मिलकर पार्टी के दफ्तर और चुनाव चिन्ह पर कब्जा न कर लें
इन निलंबनों के बाद, अकाली दल के भीतर एक अजीब सी असुरक्षा का माहौल पैदा हो गया है। पार्टी के भीतर के सूत्रों के अनुसार, अब कई नेताओं को इस बात का डर सता रहा है कि निलंबित नेता कहीं मिलकर पार्टी के दफ्तर और चुनाव चिन्ह पर कब्जा न कर लें। शिवसेना के उदाहरण को देखते हुए, जहां पार्टी के भीतर बगावत के बाद चुनाव चिन्ह और पार्टी कार्यालय को लेकर विवाद हुआ था, अकाली दल के अंदर भी वैसी ही स्थिति पैदा होने की आशंका जताई जा रही है। हालांकि, फिलहाल ऐसा कोई कदम उठाए जाने की खबर नहीं है, लेकिन भविष्य में ऐसी संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता।
इस घटनाक्रम से स्पष्ट होता है कि पार्टी के भीतर आंतरिक कलह कितनी गहरी है। शिरोमणि अकाली दल के नेताओं के बीच बढ़ते मतभेद पार्टी के लिए एक गंभीर चुनौती बन गए हैं। बागी नेताओं का कहना है कि वे नई पार्टी बनाने के बजाय शिअद के भीतर ही रहकर नेतृत्व के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करेंगे। यह स्थिति पार्टी के लिए और भी जटिल हो जाती है, क्योंकि यह कदम शिअद को न केवल पंजाब की राजनीति में कमजोर कर सकता है, बल्कि उसके पारंपरिक वोट बैंक को भी विभाजित कर सकता है।
बागी नेताओं ने हाल ही में एक बड़ा सेमिनार आयोजित किया, जिसमें उन्होंने पंथक राजनीति की दिशा में आ रही चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया। इस सेमिनार को पार्टी के भीतर अपने समर्थकों को एकजुट करने और अपनी ताकत दिखाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। इस दौरान, बागी नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि वे पार्टी के भीतर अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे और किसी भी सूरत में पीछे नहीं हटेंगे।
इस सारे घटनाक्रम से शिरोमणि अकाली दल के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। पार्टी को एकजुट रखने के लिए अब नेतृत्व को बड़े फैसले लेने की जरूरत है, वरना यह कलह पार्टी को और भी कमजोर कर सकती है। पार्टी के भीतर उठ रहे असंतोष को अगर जल्द ही शांत नहीं किया गया, तो इसका असर पार्टी के जनाधार पर भी पड़ सकता है, जिससे आगामी चुनावों में शिअद को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।